Ballia : पितृपक्ष में पितरों को पिण्डदान देने से पितृदोष से मिलती है मुक्ति: बोले डा. अखिलेश उपाध्याय
बलिया। आश्विन कृष्णपक्ष में प्रतिपदा से लेकर पितृ विसर्जनी अमावस्या तक सूर्य रश्मियों की प्रधानता होती है। रश्मियों के साथ ही पितृगण पृथ्वी पर अवतरित होते है। उन्ही के लिए पितृपक्ष पर्यान्त तर्पण, पिण्डदान, श्राद्ध कर्म सम्पादित किये जाते है। पितरों के साथ ही आठ वसु, नवग्रह ब्राहमण, रुद्र, अग्नि, विश्वेदेव, मनुष्य, और पशु-पक्षी भी सन्तुष्ट होते है। नीच ग्रह भी अपना कुप्रभाव छोड़कर मनोवांछित फल देने लगते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में श्राद्धकर्म का विशेष महत्व है। जो लोग जाने-अनजाने, भूलवश अपने पितरों का तर्पण श्राद्ध नहीं करते उन्हें पितृगण श्राप देते हैं। पितृदोष के रूप में अकाल मृत्यु होना, भाग्योदय न होना, विवाह में बिलम्ब, सन्तान न होना, खून की कमी, अनेकानेक बाधाओं से छुटकारा नहीं मिल पाता है। पितृपक्ष में पितरों को तर्पण एवं उन्हें अर्घ्य, पिण्डदान देने से पितृदोष से मुक्ति पायी जा सकती है।
ज्योतिषाचार्य, डॉ. अखिलेश कुमार उपाध्याय ने बताया कि पितृपक्ष में यदि कोई व्यक्ति तिथि पर पार्वणश्राद्ध न कर पाया हो या तिथि ज्ञात न हो तो पितृ विसर्जनी अमावस्या पर पार्वणश्राद्ध किया जा सकता है। अगर किसी कारणवश श्राद्ध न कर सके तो केवल ब्राहमण को भोजन करा देने से ही श्राद्ध हो जाता है। अगर ब्राहमण के भोजन की व्यवस्था न बन सके तो व्यक्ति को घास काटकर पितरों के नाम पर गाय को खिलाने पर श्राद्ध हो जाता है। घास न मिल सके तो दोनों भुजाओं को उठाकर पितरों की प्रार्थना करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है। पितरों के श्राद्ध न करने पर पितर अपने सगे-समबन्धियों का खून चूसने लगते हैं। उस परिवार में पुत्र उत्पन्न नहीं होता है।
कोई निरोग नहीं रहता, लम्बी आयु नहीं होती, किसी तरह का कोई कल्याण नहीं हो पाता और मरने के बाद नरक जाना पड़ता हैं। श्राद्ध कर्म मध्याह्न काल में ही करना चाहिए। इसी समय पितरों का आगमन होता है। श्राद्ध कर्म योग्य ब्राह्मण से कराने पर ही पितरों को शांति प्राप्त होती हैं।