Ballia : जीत हासिल करने के लिये हर पैतरा आजमाते है नेताजी

बैरिया (बलिया)। वैसे तो चुनाव लोकतंत्र के खूबसूरत पर्व की तरह होते हैं। लेकिन इसे जीतने के लिए पार्टी स्तर पर और प्रत्याशी स्तर पर कई बार ऐसे तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। जो न सिर्फ लोकतंत्र की मूल भावना के खिलाफ हैं बल्कि कुछ तरीके आपराधिक भी हैं। ऐसे ही कुछ तरीके और पैंतरे हमारे नेता इस्तेमाल करते हैं। दंगा फैलाना, जाति धर्म का झगड़ा बढ़ाना। देवी देवताओ पर अमर्यादित टिप्पणी करना आदि पैतरे आजमकर प्रत्याशी जीत हासिल करना चाहते है। इसके बाद वोट खरीदना लोगों का वोट खरीदकर चुनाव जीतना नेताओं की काफी पुरानी ट्रिक है। इसके लिए सबसे ज्यादा इस्तेमाल गरीब और मजबूर लोगों का किय़ा जाता है। चंद पैसे देकर राजनीतिक पार्टियां लोगों का वोट खरीद लेती हैं। यही नहीं कई बार तो शराब का लालच देकर भी वोट खरीदे जाते हैं। चुनाव आयोग की लाख सख्ती के बावजूद चुपके-चुपके प्रत्याशी वोट खरीद ही लेते हैं। वही बूथ कब्जाने का भी हथकण्डा अपनाया जाता है। संसद में बैठे कई नेताओं पर बूथ कैंप्चरिंग के बल पर चुनाव जीतने के आरोप लगते रहे हैं। देश के कई हिस्सों में कुछ प्रत्याशी तो बलपूर्वक पूरे बूथ पर कब्जा करवा लेते हैं और बड़ी आसानी, मनमाने तरीके से वोट डलवाकर चुनाव जीत जाते हैं। बिहार चुनाव में कभी बूथ कैपचरिंग आम हुआ करती थी। इसके कई बार तो ऐसा भी होता है कि कई वोटरों का नाम ही लिस्ट से गायब होता है। और उनके जगह पर किसी और से वोटिंग करा ली जाती है। ये सारा गैरकानूनी खेल चुनाव में खेला जाता है, लेकिन इन उम्मीदवारों को सजा मिलना तो दूर उल्टा इनाम में जीत मिलती है। लेकिन फिलहाल शायद ही कोई बूथ कैप्चरिंग की घटना हुई हो। दरअसल ईवीएम द्वारा वोटिंग प्रक्रिया परंपरागत प्रणाली की तुलना में काफी आसान हो गई। परंपरागत प्रणाली में मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार के चुनाव चिह्न के आगे निशान लगाना पड़ता था। इसके बाद बैलट पेपर को कई बार मोड़ा जाता था और फिर इसे बैलट बॉक्स में डालना पड़ता था। इसके बाद लोकलुभावन घोषणाएं चुनाव जीतने के लिए प्रत्याशी और पार्टियां सबसे ज्यादा इस्तेमाल करती हैं। ताजा उदाहरण अयोध्या तो अभी झांकी है काशी मथुरा बाकी है। किसानो की सिचाई मुफ्त, आम लोगो का 300 यूनिट बिजली फ्री, किसानों को आय दुगनी करने का दावा, कृषि ऋण माफ, पुरानी पेंशन आदि घोषणा। लेकिन सबसे ज्यादा बड़ी समस्या रोजगार का है जिस पर कोई भी सरकार खरा नहीं उतरी है।

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