पितृपक्ष 2020: आखिर चावल से ही क्यों दिया जाता है पिंड, जानिएं ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब

पंडित अखिलेश उपाध्याय 

भादप्रद माह की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होते हैं जो अश्विन मास की अमावस्या तक होते हैं इस तरह से 16 दिन पितरों को समर्पित किए जाते हैं। इस बार 2 सितंबर से पितृपक्ष आरंभ होकर 17 सितंबर तक रहेगा। यह समय पितरों को तृप्त करके उनका आशीर्वाद लेने के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। मान्यता है कि इस समय पितर धरती पर होते हैं। जानते हैं पितृ पक्ष से जुडें सवालों के जबाब..

पिंडदान करते समय क्यों बनाए जाते हैं चावल के पिंड
चावल की तासीर ठंडी होती है इसलिए पितरों को शीतलता प्रदान करने के लिए चावल के पिंड बनाए जाते हैं, चावल के गुण लंबे समय तक रहते हैं जिससे पितरों को लंबे समय तक संतुष्टि प्राप्त होती है। वैसे चावल के अलावा जौ, काले तिल आदि से भी पिंड बनाए जाते हैं। चावल के जो पिंड बनाते हैं उसे पयास अन्न (जो चावल और तरल से मिलकर बना हो) कहते हैं इसे प्रथम भोग माना जाता है।


श्राद्ध के समय उंगली में क्यों पहनी जाती है कुशा
कुशा और दूर्वा दोनों में शीतलता प्रदान करने के गुण पाए जाते हैं। कुशा घास को बहुत पवित्र माना जाता है, इस पवित्री भी कहा जाता है। इसलिए श्राद्धकर्म करने से पहले पवित्रता के लिए हाथ में कुशा धारण की जाती है।


गाय, कुत्ते और कौए को क्यों कराया जाता है भोजन
सनातन धर्म में गाय में देवी-देवताओं का वास माना जाता है इसलिए हर कार्य में गाय को भोजन अवश्य कराया जाता है, तो वहीं कौए को पितरों का रुप माना गया है, हमारे पितर, पितरलोक या यमलोक में वास करते हैं, और कौए को यम का संदेशवाहक भी माना गया है, और यम के साथ श्वान यानि कुत्ते रहते हैं, इसलिए कुत्ते को ग्रास खिलाने का प्रावधान है।

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श्राद्धकर्म के लिए दोपहर का समय ही श्रेष्ठ
दोपहर का समय एक ऐसा समय होता है जब सूर्य की किरणे पृथ्वी पर तेज और सीधी पड़ती है। और यह माना जाता है कि श्राद्ध को पितर सूर्य के प्रकाश में सही प्रकार से ग्रहण कर पाते हैं। जिस तरह से देवताओं को भोग लगाने के लिए अग्नि का प्रयोग यानि हवन यज्ञ करते हैं उसी प्रकार से सूर्य के प्रकाश द्वारा पितरों तक भोजन पहुंचाया जाता है।

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