-दिनांक – 17 अक्टूबर 2022
-दिन – सोमवार
- विक्रम संवत – 2079
- शक संवत -1944
- अयन – दक्षिणायन
- ऋतु – शरद ॠतु
-मास – कार्तिक
-पक्ष – कृष्ण
-तिथि – सप्तमी सुबह 09रू29 तक तत्पश्चात अष्टमी
-नक्षत्र – पुनर्वसु 18 अक्टूबर प्रातः 05रू13 तक तत्पश्चात पुष्य
-योग – शिव शाम 04रू02 तक तत्पश्चात सिध्द
-राहुकाल -प्रातः 07रू33 –08रू59 बजे तकतक
-सूर्याेदय – 06रू07
-सूर्यास्त – 17रू36 - दिशाशूल – पूर्व दिशा में
-व्रत पर्व विवरण -अहोई अष्टमी, राधा कुण्ड स्नान कालाष्टमी, संक्रांति (पुण्यकाल रू दोपहर 12रू24 से सूर्यास्त तक)
-विशेष – सप्तमी को ताड़ का फल खाने से रोग बढ़ता है तथा शरीर का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34) -संक्रांति
17 अक्टूबर 2012 सोमवार को संक्रांति (पुण्यकाल रू दोपहर 12रू24 से सूर्यास्त तक)
इसमें किया गया जप, ध्यान, दान व पुण्यकर्म अक्षय होता है । - धनतेरस के दिन यमदीपदान
22 अक्टूबर 2022 शनिवार को धनतेरस है ।
इस दिन यम-दीपदान जरूर करना चाहिए। ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय समाप्त होता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा सिर्फ दीपदान करके की जाती है। कुछ लोग नरक चतुर्दशी के दिन भी दीपदान करते हैं।
-स्कंदपुराण में लिखा है
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां निशामुखे ।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनिश्यति ।।
अर्थात कार्तिक मासके कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन सायंकाल में घर के बाहर यमदेव के उद्देश्य से दीप रखने से अपमृत्यु का निवारण होता है ।
-पद्मपुराण में लिखा है
कार्तिकस्यासिते पक्षे त्रयोदश्यां तु पावके।
यमदीपं बहिर्दद्यादपमृत्युर्विनश्यति।।
कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को घर से बाहर यमराज के लिए दीप देना चाहिए इससे दुर्गम मृत्यु का नाश होता है।
-यम-दीपदान सरल विधि
यमदीपदान प्रदोषकाल में करना चाहिए । इसके लिए आटे का एक बड़ा दीपक लें। गेहूं के आटे से बने दीप में तमोगुणी ऊर्जा तरंगे एवं आपतत्त्वात्मक तमोगुणी तरंगों (अपमृत्यु के लिए ये तरंगे कारणभूत होती हैं) को शांत करने की क्षमता रहती है । तदुपरान्त स्वच्छ रुई लेकर दो लम्बी बत्तियॉं बना लें । उन्हें दीपक में एक -दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुँह दिखाई दें । अब उसे तिल के तेल से भर दें और साथ ही उसमें कुछ काले तिल भी डाल दें । प्रदोषकाल में इस प्रकार तैयार किए गए दीपक का रोली , अक्षत एवं पुष्प से पूजन करें । उसके पश्चात् घर के मुख्य दरवाजे के बाहर थोड़ी -सी खील अथवा गेहूँ से ढेरी बनाकर उसके ऊपर दीपक को रखना है । दीपक को रखने से पहले प्रज्वलित कर लें और दक्षिण दिशा (दक्षिण दिशा यम तरंगों के लिए पोषक होती है अर्थात दक्षिण दिशा से यमतरंगें अधिक मात्रा में आकृष्ट एवं प्रक्षेपित होती हैं) की ओर देखते हुए चार मुँह के दीपक को खील आदि की ढेरी के ऊपर रख दें । ‘ॐ यमदेवाय नमः ’ कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें । - यम दीपदान का मन्त्र रू
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन श्यामया सह द्य
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम द्यद्य
इसका अर्थ है, धनत्रयोदशीपर यह दीप मैं सूर्यपुत्रको अर्थात् यमदेवताको अर्पित करता हूं । मृत्युके पाशसे वे मुझे मुक्त करें और मेरा कल्याण करें ।
-पं अविनाश पाण्डेय, मो. 7668531310