Ballia : अपने नेताओं की गिरफ्तारी पर आक्रोश में थे बलियावासी
19 अगस्त 1942: बलिया बलिदान दिवस
बलिया। आइये जानते है 19 अगस्त 1942 बलिया बलिदान दिवस के घटनाक्रम को, जानने के लिये आइये आपको ले चलते है मुंबई क्रांति मैदान, बम्बई अधिवेशन में महात्मा गांधी जी ने भारत छोड़ों आंदोलन में करों या मरों का नारा दिया। आल इंडिया रेडियो स्टेशन से गांधी जी भारतीयों से आह्वान किया कि यह आंदोलन अब तक का सबसे बड़ा आंदोलन है। ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ फेंकना, गांधी जी का यह उद्बोधन ब्रिटिश सरकार को नागवार गुजरा, फलस्वरूप नौ अगस्त 1942 को देश के बड़े नेताओं की गिरफ्तारियां होने लगी। जेलों में डाला गया। गांधी जी को आगा खां पैलेस में नजरबंद किया गया। बाबू राजेंद्र प्रसाद को पटना, लोकनायक जयप्रकाश नारायण को हजारी बाग जेल में डाल दिया गया। इधर उप्र बलिया जिले का नेतृत्व कर रहे चित्तू पांडेय सहित बड़े नेताओं को जिला कारागार में बंद कर दिया गया। व्यापक स्तर पर गिरफ्तारियों की बात पूरे बलिया में आग की तरह फैल गयी। लोग आग बबूला होकर जिसको जो मिला हाथों में लाठी, डंडा, भाला, गड़ासा, बल्लम, यहां तक की माटा, चूटा, गोजर, बिच्छु लेकर सड़कों पर उतर गये। सड़कों को खोद दिया गया। रेल पटरियों को उखाड़ फेंका गया। डाक तार संपर्क काट दिया गया। खजाना लूटा गया। 10 थानों की पुलिस निष्क्रिय हो गयी। थाना व तहसीलों पर लोगों ने कब्जा जमाना शुरू कर दिया। इस आंदोलन में 500 पढ़ने वाले छात्रों का बहुत बड़ा योगदान था। महिलाओं का नेतृत्व ओक्डेनगंज निवासी वीरांगना जानकी देवी कर रही थीं। जिला जज को चूड़ियां भेंट करते ही जज साहब अपना चैंबर छोड़कर भाग गये। जानकी देवी वहां झंडा फहरा दिया।
जनता का जनसैलाब जिला कारागार को चारों तरफ से घेर लिया। प्रशासन किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया। चित्तू पांडेय, राधामोहन ,विश्वनाथ चौबे सहित क्रांतिकारियों को छुड़ाया गया। बागी धरती के सपूतों के सामने ब्रिटिश हुकूमत को घुटने टेकने पड़े। बलिया के तत्कालीन डीएम जेसी निगम और एसपी रियाजुद्दीन खां ने सरेंडर कर दिया। 19 अगस्त 1942 की शाम करीब छह बजे बलिया को आजाद राष्ट्र घोषित कर दिया गया। पूरे भारत में सबसे पहले बलिया में अंग्रेजों के समानांतर सरकार बनी। चित्तू पांडेय डीएम और महानंद मिश्र एसपी बने। किंतु यह सरकार ज्यादा दिन तक नहीं रही। 23 अगस्त की रात को अंग्रेजों ने बलिया पहुंचकर दमन चक्र चलाया जिसमें 84 लोग शहीद हो गये।
रामचंद्र, बलिया।