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Ballia : जीवन में बदलाव नहीं तो कथा श्रवण बेकार : गौरांगी गौरी


सिकन्दरपुर (बलिया)।
तहसील क्षेत्र सिकन्दरपुर स्थित सरयू तटवर्ती ग्राम डूहा बिहरा में विश्व कल्याण के लिए 108 कुण्डीय कोटि होमात्मक अद्वैत शिवशक्ति ाजसूय महायज्ञ देखने के इच्छुक श्रध्दालुओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। यह महायज्ञ एक प्रकार से सूक्ष्मतः महाकुम्भ का रूप लेता जा रहा है। श्री वनखण्डी नाथजी तथा उक्त यज्ञ के आयोजक एवं प्रधान यजमान पूर्व मौनव्रती स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराजा की अदृश्य कृपा भक्तों पर बरस रही। श्रद्धालुजन सुबह से शाम और देर रात तक लम्बी-लम्बी पंक्तियों में बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिल बैठकर लंगर (महा प्रसाद) पा रहे हैं। यज्ञ स्थल पूरी तरह से दुल्हन की तरह सजी है। सेवादार घर-घर से निकलकर आगन्तुकों की सेवा कर रहे हैं। वस्तुतः ऐसा सौभाग्य जन्म-जन्मान्तर के उत्तम संस्कारों से मिलता है। शायद ही कोई होगा, जो इस ’महाकुम्भ’ का परीक्षापरोक्ष लाभ न ले रहा हो। ध्वनि-विस्तारक यन्त्रों से वातावरण गुञ्जायमान गुज रहता है। सान्ध्य सत्र में व्यासपीठ से गौरांगी गौरी जी ने सुधी श्रोताओं को सम्बोधित करते हुए अपने उद्बोधन में कहा कि शम्भू ने सर्वजन हिताय विषपान तो कर लिया किन्तु उसे गले में ही रोक लिया, ताकि हृदय में बसने वाले वाले प्रभु पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े केवल विष ही विष नहीं बल्कि संसार में और भी अनेक प्रकार के विष है जिनसे सज्जनों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। संसार को इनसे मुक्ति चाहिए) उन्होंने आगे कहा कि यदि आपको अच्छा बने रहना है तो सर्वदा निश्चिन्त बने रहें तथा भगवान की अविरल स्मृति बनाये रखें। निन्दक से कभी भी विचलित मत हो क्योंकि वह आपकी बुराई का प्रक्षालन ही करता है, जिसकी निन्दा या बुराई होती है वहीं आगे बढ़ता है। बुराई वही करता है जो आपकी बराबरी नहीं कर पाता। बुरात्तये बुरा, यदि अच्छा भी करेंगे तो ऐसे लोग आपको छोड़ेंगे नहीं। जब कृष्ण तथा राम को नहीं छोड़ा तो और किसे छोड़ सकते। हाँ, भगवान की दृष्टि में आप अच्छे बने रहें। जगत में बसना है किन्तु फँसना नहीं। हम सभी प्राणी कालरूपी अजगर के मुख में हैं। यहाँ सब कुछ नश्वर है, स्थायी कुछ नहीं, मात्र सत्कर्म और हरिभजन ही साथ जाते हैं। कथा तो बहुर्ता से सुनी किन्तु जीवन में बदलाव नहीं आया तो कथा-श्रवण से क्या मतलब? कहा कि यहाँ न कुछ तेरा है, न मेरा। साकार व निराकार यही दोनों प्रभु के पृथक-पृथक दो मुख्य स्वरूप मान्य हैं, हालाँकि यह प्रकरण गहन शोध का विषय है। भाव के भूखे भगवान को निश्छल प्रेम प्यारा है। इन्द्रियातीत परमात्मा सब कुछ करते हुए भी अकत्ती अभोक्ता बने रहते हैं।
रमेश जायसवाल

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