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बिहार भूमि सर्वे: नए कानून की जरूरत या पुराने कानूनों में सुधार की गुंजाइश?

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बिहार में भूमि सर्वे को लेकर सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। राज्य के 45,000 से अधिक गांवों में जमीन का सर्वे किया जा रहा है। सरकार का उद्देश्य विवादित जमीनों का निपटारा करना और सही मालिक को उसकी जमीन का हक दिलाना है। इसके साथ ही, सरकार चाहती है कि गांवों की जमीन का सही आंकलन कर उसका एक विस्तृत डेटा तैयार किया जा सके। हालांकि, इस सर्वे के दौरान कुछ लोगों को अपने जमीन से जुड़े दस्तावेज जुटाने में दिक्कतें भी हो रही हैं।

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नए कानून की बहस: क्या यह सही दिशा है?

बिहार विशेष भूमि सर्वेक्षण कानून को लेकर कई विवाद उभर कर सामने आ रहे हैं। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि यह सर्वे गांवों में विवाद बढ़ा सकता है और इसके परिणामस्वरूप न्यायालयों में मुकदमों का बोझ बढ़ जाएगा। भाकपा ने यह मांग की है कि सरकार इस भूमि सर्वेक्षण पर तत्काल रोक लगाए।

पटना में भाकपा से जुड़े अधिवक्ताओं की बैठक के बाद यह मामला गंभीरता से उठाया गया। बैठक में नए फौजदारी कानून, वक्फ बोर्ड संशोधन कानून और बिहार विशेष भूमि सर्वेक्षण पर गहन चर्चा की गई। पार्टी का कहना है कि पुराने कानूनों में समय-समय पर संशोधन की गुंजाइश थी और नए कानूनों की इतनी जरूरत नहीं थी। जनता और कानून समुदाय पुराने कानूनों से पहले से ही परिचित थे और उन्हीं में सुधार करके काम चलाया जा सकता था।

सरकार की मंशा: विवादों का समाधान या नए विवादों का आगाज?

सरकार का कहना है कि भूमि सर्वेक्षण का मुख्य उद्देश्य विवादित जमीनों का समाधान निकालना और सही मालिक को उसकी जमीन का अधिकार देना है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह सर्वे वाकई विवादों को सुलझाएगा या नए विवादों को जन्म देगा? कई गांवों में सर्वे के दौरान जमीन से जुड़े दस्तावेज जैसे – khata khasra bihar, bihar dakhil kharij,bhu naksha bihar, khatiyan आदि न मिलने की वजह से स्थानीय लोग परेशान हो रहे हैं। इसमें खासकर उन लोगों को मुश्किलें हो रही हैं जिनके पास पुराने दस्तावेज या तो खो चुके हैं या उपलब्ध नहीं हैं।

यह भी देखने को मिला है कि कई मामलों में जमीन के पुराने दस्तावेज और सर्वे के नए आंकड़े मेल नहीं खा रहे हैं, जिससे असमंजस की स्थिति बन रही है। इस तरह की स्थिति से बचने के लिए सरकार को एक मजबूत और पारदर्शी व्यवस्था बनानी चाहिए।

भाकपा की आपत्ति: क्या सर्वे गांवों में विवाद बढ़ाएगा?

भाकपा की ओर से भूमि सर्वेक्षण पर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं। पार्टी का मानना है कि यह सर्वे गांवों में नए विवादों का कारण बन सकता है, क्योंकि कई स्थानों पर जमीन के मालिकाना हक को लेकर पहले से ही विवाद चल रहे हैं। यदि सर्वेक्षण के आंकड़े और जमीन के मौजूदा दस्तावेजों में अंतर पाया गया, तो यह स्थिति और भी जटिल हो सकती है।

इसके अलावा, भाकपा का यह भी कहना है कि यह सर्वे कोर्ट में लंबित मुकदमों की संख्या को बढ़ा सकता है, जिससे न्यायालयों पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा। पार्टी ने यह मांग की है कि सरकार इस सर्वे को तत्काल प्रभाव से रोक दे और इस पर पुनर्विचार करे।

नए फौजदारी कानून पर चिंता: पुलिस के अधिकारों पर सवाल

भाकपा ने सिर्फ भूमि सर्वेक्षण ही नहीं, बल्कि सरकार द्वारा प्रस्तावित नए फौजदारी कानूनों पर भी आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि यह कानून पुलिस को अनावश्यक अधिकार प्रदान करता है, जिससे पुलिस द्वारा गलत इस्तेमाल की संभावनाएं बढ़ सकती हैं।

नए कानून के तहत पुलिस को और अधिक अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है, जबकि पुराने कानूनों में समय-समय पर संशोधन किए जा सकते थे। कानून विशेषज्ञों और जनता का मानना है कि पुलिस को अनावश्यक अधिकार देने से भ्रष्टाचार और अत्याचार की घटनाएं बढ़ सकती हैं। इसलिए, नए कानून को लाने की जगह पुराने कानूनों में सुधार किया जाना चाहिए था।

पुराने कानूनों में सुधार की गुंजाइश

विशेषज्ञों का मानना है कि भूमि से जुड़े पुराने कानूनों में समय-समय पर संशोधन की जरूरत थी, न कि नए कानून लाने की। पुराने कानूनों के तहत भूमि के मालिकाना हक और विवादों को सुलझाने के स्पष्ट प्रावधान थे। ऐसे में सरकार को इन कानूनों में सुधार कर उन्हें अधिक प्रभावी बनाना चाहिए था, बजाय नए कानून लाने के।

कई बार देखा गया है कि नए कानूनों के कारण जनता और कानून समुदाय को अपने-आप को ढालने में समय लगता है, जिससे नई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए, पुराने कानूनों में ही बदलाव करके समस्याओं का हल निकाला जा सकता था।

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