Ballia : १९४२ में बलिया की जनक्रांति, उमाशंकर सोनार ने जनक्रांति का बजाया बिगुल
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बलिया। ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से सभी गुलाम देश त्रस्त थे। भारत (वर्तमान भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान, म्यांमार) पर ब्रिटिश सरकार अपनी चाल चल चुकी थी। इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि एक ओर अ.भा. कांग्रेस कमेटी की बम्बई में मीटिंग चल रही थी और दूसरी ओर दिल्ली मंे वायसराय की कौंसिल की मीटिंग हो रही थी। 8 अगस्त 1942 को कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने प्रस्ताव पारित बहुमत से पारित किए। इस प्रस्ताव का लब्बोलुआब यह था कि ब्रिटिश सरकार भारत की स्वतंत्रता की घोषणा करें और एक अस्थाई संयुक्त सरकार बनाई जाए, इस सरकार को यहाँ के किसान, मजदूर वर्ग की भलाई के विधान बनाने का अधिकार हो। बर्मा, मलाया, इंडोचीन, डच ईस्ट इंडीज, ईरान और ईराक के साथ भी ऐसा ही हो , अन्यथा कांग्रेस कमेटी एक अहिंसात्मक सामूहिक संघर्ष आरंभ करेगी। इस प्रस्ताव पर अंतिम भाषण देते हुए गाँधी जी कहा कि मैं तत्काल आन्दोलन आरंभ करने की आज्ञा नहीं दूंगा। इस संदर्भ में वायसराय को अंतिम रुप से एक पत्र लिखूंगा, जिसके उत्तर की एक पखवारे तक प्रतीक्षा करेंगे। इसी दिन सरकार ने अखबारों पर प्रतिबंध लगाए और कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर नजरबंद कर दिए। डॉ. कौशिकेय ने कहा कि उस समय संचार के इतने साधन नही थे। रेडियो पर जो खबर बलिया आई वह मात्र इतनी भर थी कि अलसुबह महात्मा गाँधी, मौलाना आजाद, सरदार बल्लभभाई पटेल, जवाहर लाल नेहरु आदि बम्बई में गिरफ्तार हो गए हैं। डॉ. कौशिकेय ने कहा कि यहीं से बलिया जिले उस पराक्रम और पुरुषार्थ की कहानी प्रारंभ होती है, जो बलिया को ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह का महानायक बनाती है। उस समय जिले में पाँच हजार कौमी सेवादल के प्रशिक्षित कार्यकर्त्ता थे। लेकिन लखनऊ के कांग्रेस नेताओं ने कुछ ही महीने पहले सेवादल के कप्तान महानंद मिश्र उपकप्तान त्रय राजेश्वर तिवारी, विश्वनाथ चौबे, श्रीपति कुँवर को हटाकर बरमेश्वर पाण्डेय को कप्तान नियुक्त कर दिए थे, जिससे सेवादल कार्यकर्त्ता नाराज थे। इधर कांग्रेस जिलाध्यक्ष चित्तू पाण्डेय सहित सभी नेताओं की गिरफ्तारी बहुत पहले हो चुकी थी। शहर में नगर मंत्री उमाशंकर सोनार और सूरज लाल ने रेडियो की खबर पर ही बलिया की जनता को ’’अंग्रेजों भारत छोड़ों’’ आन्दोलन के लिये भोपू लेकर जगाना शुरु कर दिया।
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