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Ballia : छोटे दलों का साथ, फायदे की बात


ओपी राजभर व संजय निषाद के पुत्र और अनुप्रिया पटेल के पति है राजनीति में सक्रिय
रोशन जायसवाल
बलिया
। उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में जातीय समीकरण पर यदि नजर डाले तो पिछड़ी जातियों के नेताओं के दलों को भाजपा इसलिए अपने साथ लेकर चलती है कि उन्हें पिछड़ी जातियों का वोट मिल सके और वह देश की सत्ता में पहुंच सके। मोदी लहर के पूर्व पिछड़ी जातियों के नेता परिस्थितियों के मुताबिक सपा एवं बसपा के साथ तालमेल बनाकर चलते रहे। यही वजह रही कि भाजपा सत्ता से दूर होती रही।

2014 में मोदी लहर उस समय चर्चा में आयी, जब मोदी प्रधानमंत्री पद के चेहरे के रूप में सामने आये। मोदी लहर की सफलता के पीछे यह भी सोच रही कि छोटी जातियों के नेताओं एवं उनके दलों को अपने साथ जोड़कर चले और इसका फायदा 2017 के विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। वहीं, सपा एवं बसपा का पिछड़ा वोट खिसक कर भाजपा के पाले में चला गया। इसका फायदा लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा को मिला। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन को कुल 15 सीटें ही मिली और एक सीट कांग्रेस को। 64 सीटें भाजपा को मिली। इसके पूर्व उत्तर प्रदेश में सपा एवं बसपा को अधिक सीटें मिलती रही है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पिछड़ी जातियों की बदौलत ही योगी आदित्यनाथ यूपी की सत्ता में है। 2022 में भी दूसरी बार योगी सरकार पिछड़ी जातियों के वोट से ही बनी। क्योंकि पिछड़ी जातियों के नेताओं ने ही भाजपा को बल दिया।

अब इसी फार्मूले को भाजपा लोकसभा चुनाव-2024 में लेकर चलना चाहती है। शायद इसीलिए सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर को अपने साथ लेकर उन्हें पंचायती राज विभाग का मंत्री बनाया। मजे की बात यह है कि घोसी लोकसभा सीट को भी भाजपा ने सुभासपा की झोली में डाल दिया। चर्चा यह भी होती है कि भाजपा परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देती है, लेकिन एनडीए में शामिल घटक दल परिवारवाद को जरूर बढ़ावा देते है। बाद करें निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद की। वह योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री है। उनके पुत्र प्रवीण निषाद संत कबीरनगर से सांसद है। इनके दूसरे पुत्र श्रवण निषाद चौरी चौरा के विधायक है। वहीं, अपना दल (एस) की राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल कुर्मी जाति से है। इनके पति आशीष पटेल योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री है। पूर्वांचल के पिछड़ी जातियों के नेता जातीय दल बनाकर सत्ताधारी पार्टी से जुड़कर भले ही दावा करते हो कि अपने समाज के हित के लिए काम कर रहे है, लेकिन हकीकत कुछ और है। आगामी लोकसभा चुनाव में एनडीए को इन दलों से क्या फायदा होगा? यह वक्त की बात होगी, लेकिन यह भी भाजपा को इसके पूर्व चुनावों में जबरजस्त फायदा हुआ है।

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