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Ballia : अपनी अस्मिता खोता जा रहा है राष्ट्रीय वृक्ष बरगद

बोले डा० गणेश पाठक
वट सावित्री व्रत पर विशेष
बलिया।
अमरनाथ मिश्र पी जी कालेज दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य एवं भूगोल विभागाध्यक्ष तथा जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया के पूर्व शैक्षणिक निदेशक पर्यावरणविद् डा० गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि वट वृक्ष, जिसे आम बोल- चाल की भाषा में बरगद कहा जाता है, एक विशेष धार्मिक, आध्यात्मिक एवं औषधीय वृक्ष है। यह एक विशाल वृक्ष होता है, किंतु इसका बीज अति सूक्ष्म होता है। यह भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। धार्मिक महत्व के अनुसार वट वृक्ष की छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा एवं शाखाओं में भगवान शिव का वास होता है। इसकी विशालता एवं आयु दीर्घता के कारण ही स्त्रियां इसे अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक मानकर ज्येष्ट मास की अमावस्या को विशेष पूजा-अर्चना करती हैं। बरगद को शिव के समान मानकर अनेक अवसरों पर पूजा की जाती है। औषधीय वृक्ष के रूपमें बरगद की छाल, पत्ती, फल, जड़, तना, दूध सबकुछ उपयोगी होता है, जिससे अनेक प्रकार की पौष्टिक औषधियां बनायी जाती हैं। आवश्यकता इस बात की है कि 100 वर्ष से अधिक पुराने वट वृक्ष को हेरिटेज वृक्ष घोषित कर उनको संरक्षण प्रदान किया जाय ,ताकि हिन्दुस्तान की यह विरासत बची रहे और हमें अबाधगति से आक्सीजन मिलता रहे।

प्रयागराज में हैं अक्षयवट
वैज्ञानिकों के अनुसार बरगद की आयु 500 से 1000 वर्ष तक होती है। भारत में अनेक स्थानों पर बरगद के 400 से अधिक पुराने वृक्ष उपलब्ध हैं। प्रयागराज में एक बहुत पुराना वट वृक्ष है, जिसे अक्षयवट कहा जाता है। अर्थात् ऐसा वट वृक्ष जिसका कभी क्षय नहीं हुआ है। यही कारण है कि इस अक्षयवट का विशेष धार्मिक- आध्यात्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व है, जिसकी पूजा का ज्येष्ठ मास की अमावस्या का विशेष महत्व है। इस वटवृक्ष का कभी विनाश नहीं हुआ है। ऐसी मान्यता है। इसी लिए औरतें इसे अखण्ड सौभाग्य का प्रतीक मानकर पूजा करती हैं।

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