जब अंग्रेजों ने वृंदावन तिवारी के सीने में मारी गोली- अमरजीत सिंह
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बलिया। अगस्त क्रांति के उस क्षण को हम कभी नहीं भूल सकते जब 1942 में वृंदावन तिवारी के सीने में अंग्रेजों ने गोली चला दी। उस समय उनकी उम्र मात्र 30 वर्ष की थी। उनके साथ चितबड़ागांव के ही जनार्दन तिवारी, शिवपूजन पांडेय, राजनारायण तिवारी, युगल किशोर सिंह, अक्षय कुमार गुप्ता, रामचंद्र तिवारी, रामचरित्र तिवारी, हरिशंकर तिवारी, गफूर साहब, जगन्नाथ तिवारी, बेनी माधव सिंह, सूरज दूबे, योगेंद्र तिवारी, राधाकृष्ण गुप्त आदि ने अंग्रेजों से सामना किया। 23 अगस्त 1942 में निदरसोल नामक अंग्रेज अधिकारी के नेतृत्व में फौज की एक टुकड़ी रेल की पटरियों को ठीक करते हुए आगे बढ़ती जा रही थी।
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यह देख झंडावाहक हरिद्वार बढ़ई ने रामशाला पर लगा घंटा बजाकर चितबड़ागांव नगर में आगामी खतरे की सूचना दी। इस सूचना पर सभी क्रांतिकारी एक जगह पर जुटने लगे और रेलवे लाइन की पटरी उखाड़ते हुए रेलवे स्टेशन को फूंक दिया और अंग्रेजों से जमकर सामना किया। चितबड़ागांव के चेयरमैन अमरजीत सिंह ने बताया कि आजादी के इतिहास में चितबड़ागांव का एक अलग नाम रहा है जो बलिया ही नहीं पूरे देश में जाना जाता है। हम 23 अगस्त को उन क्रांतिकारियों को नमन करते हए उन्हें याद करते है और इस पावन पर्व पर 23 अगस्त को नगर पंचायत चितबड़ागांव के शहीद स्थल पर विशाल कार्यक्रम आयोजित होता है। इस कार्यक्रम में सभी लोग एकत्रित होकर बलिदानियों को याद करते है।
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