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Ballia : क्यों बढ़ जाता है दीवाली पर वायु एवं ध्वनि प्रदूषण, बता रहे पर्यावरणविद डा0गणेश पाठक

मझौंवा (बलिया)। अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डाँ०गणेश कुमार पाठक ने एक भेंटवार्ता में बताया कि प्रायः यह देखा गया है कि पटाखों में बारूद, चारकोल, सल्फर एवं नाइट्रोजन जैसे रसायनों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया जाता है। ऐसे पटाखों के विस्फोट से रसायनों का मिश्रण गैस के रूप में वातावरण में फैल जाता है, जिससे वायु प्रदूषण एवं ध्वनि प्रदूषण बढ़ जाता है। सूक्ष्म धूल के कण भी घातक सिद्ध होते हैं। पटाखों से निकलने वाली सल्फर डाई आक्साइड एवं नाइट्रोजन आक्साइड गैसों तथा लेड सहित अन्य रासायनिक तत्वों के सूक्ष्मकणों का प्रभाव अस्थमा एवं हृदय के रोगियों के लिए हानिकारक होता है। सामान्य दिनों में 24 घंटों में सल्फर गैस औसतन 10.6 एवं नाइट्रोजन 9.31 माइक्रो मिलीग्राम प्रति घन मीटर हवा में विद्यमान रहता है, जिसका मानव शरीर पर कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ता है। किंतु ऐसा पाया गया है कि दीपावली के समय 24 घंटे में इन गैसों की मात्रा दुगुनी बढ़ जाती है। जिसका सीधा दुष्प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है। सूक्ष्म धूलकण 10माइक्रोग्राम होता है। इस सूक्ष्म धूल कण की मात्रा वातावरण में 100 माइक्रोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। जबकि दीपावली के समय इन सभी प्रदूषणकारी तत्वों की मात्रा मानक से अधिक हो जाती है। दीपावली के अवसर पर ध्वनि प्रदूषण भीअधिक होता है। सामान्य स्तर पर 80 डेसीबल की ध्वनि ही मानव के लिए सहनीय मानी गयी है। विशेष अवसरों पर यह ध्वनि 120 डेसीबल तक सहनीय हो सकती है। किंतु दीपावली पर 125 डेसीबल तक की छूट दी गयी है।इससे अधिक ध्वनि विशेष हानि पहुंचा सकती है।

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