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वाराणसी : यूं ही नहीं मशहूर है काशी का “दशाश्वमेध” घाट, ब्रह्मा ने किया था

रोशन जायसवाल

वाराणसी : काशी के प्रमुख चौरासी गंगा के घाटों की सीरीज में प्रमुख स्थान दशाश्वमेध घाट का आता है। इतिहासकार बताते हैं कि वर्ष 1748 में मराठा बाजीराव पेशवा ने घाट का निर्माण कराया था। मान्यता है कि पहले घाट अहिल्याबाई घाट से लेकर राजेन्द्रप्रसाद घाट तलक विस्तृत बना हुआ था। पुराणों में मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा जी ने यहां दस अश्वमेघ यज्ञ किया थे। इसी वजह से कालांतर में घाट की पहचान दशाश्वमेध घाट के तौर पर बन गई। हालांकि इसके अतिरिक्त भी इतिहासकार अन्य प्रचलित कहानियां भी बताते हैं।स्थानीय तीर्थ पुरोहित घाट पर रूद्र सरोवर तीर्थ की मान्यता भी बताते हैं। जहां स्नान से मोक्ष और पापों से मुक्ति भी मिलती है।

धर्मानुरागी मानते हैं कि मत्यस्यपुराण के अनुसार काशी के पांच प्रमुख तीर्थो में दशाश्वमेध घाट को भी प्रमुख मान्यता हासिल है। इस घाट पर काली मंदिर, राम पंचायतन व शिव मंदिर स्थापित है। घाट पर मुण्डन, विवाह गंगा पूजा आदि कार्यो को स्थानीय लोग शुभ मानते हैं। इसलिए घाट की धार्मिक वजहों से अधिक मान्यता है। प्रमुख मार्ग से जुड़े होने की वजह से पूर्व में घाट पर मूर्तियों का विसर्जन होता आया है। मगर अब रोक की वजह से छोटी मूर्तियां ही श्रद्धालु लाते हैं। यहां नित्य सुबह और शाम होने वाली गंगा आरती देखने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रां तक आ चुके हैं। इस प्रसिद्ध आरती का हिस्सा बनने देश विदेश से लोगों के आने का क्रम लगातार चलता रहता है। बाढ़ की स्थिति में आरती स्थल भी बदलता रहता है। देव दीपावली पर भी प्रमुख आयोजन घाट पर होने की वजह से इसके सम्मुख विशिष्ट मंच तो सजता ही है साथ ही गंगा में नौकाओं की अनगिन कतारों से ट्रैफिक जाम की भी स्थिति बन जाती है। बुढ़वा मंगल पर भी बजड़े सजते हैं और गीत संगीत के आयोजन से घाट उल्लास में डूबा रहता है। सभी प्रमुख घाटों को नया जीवन देने के क्रम में सन् 1965 में राज्य सरकार ने दशाश्वमेध घाट का जीर्णोद्धार भी कराया गया था। इसके बाद भी समय समय पर घाट को नया कलेवर देने का क्रम चलता रहा है। गंगा से जुडे़ अमूमन सभी प्रमुख आयोजन घाट पर आयोजित होते हैं।

 

पुराणों के अनुसार दशाश्वमेध घाट
ब्रह्मा जी ने दश अश्वमेध यज्ञ किया था। घाट पर स्न्नान करने से यज्ञ का फल प्राप्त है। काशी के घाटो में दशाश्वमेध घाट का प्रमुख स्थान है। इस स्थल ब्रह्मा द्वार भी कहा जाता है। इसका प्राचीन नाम रूद्र सरोवर है गंगा के आगमन के साथ ही रूद्र सरोवर ही तीर्थ गंगा में विलीन हो गया और यह स्थान काशी का प्रमुख तीर्थ स्थल ही बना रहा इसे प्रयाग राजघाट कहा जाने लगा । काशी के घाटो तीन घाट प्रमुख है उनमे भी यह घाट प्रमुख है जो भी कर्म यही पर किया जाता है वह अक्षय होता है बाला जी बाजीराव पेशवा के द्वारा सन 1748 में घाट का निर्माण कराया गया । यहाँ सुबह व शाम गंगा की महाआरती होती है। देश विदेश से पर्यटक यहाँ आते है । गंगा स्थान के बाद काशी विश्वनाथ का दर्शन करने की एक अलग परंपरा है।

 

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