Ballia : पं. रामअनंत पांडेय की ललकार ने युवाओं में भरा जोश, निकल पड़े आजादी के दीवाने
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बलिया। तारीख- 11 अगस्त 1942, 10 अगस्त को बलिया की सड़कों पर उमड़े जनसैलाब ने जो संदेश दिया, उससे स्वतंत्रता आन्दोलन के नरम दल और गरमदल दोनों के नेता – कार्यकर्त्ता काफी उत्साहित थे। उस विशाल जूलूस में शामिल लोग बड़ी बहादुरी के साथ दूसरों को यह समझा रहे थे कि अब तो बलिया के कलक्टर, एसपी ने लिखकर भेज दिया है कि बलिया को आजाद करना पड़ेगा, नही तो बहुत खून-खराबा, बलवा हो जाएगा। कुछ लोग सुनकर हंसते थे, लेकिन बहुतेरों के मन-दिमाग में बैठा प्रशासनिक अमले का डर निकलने लगा था। क्योंकि जब जूलूस निकला, तो लोगों को लग रहा था कि अंग्रेज अधिकारी जूलूस पर लाठीचार्ज करेगें, गोली चलवाएगें, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। उल्टे प्रशासनिक अमला भीड़ को देखकर दुबक गया। आज सुबह से ही कजरारे बादल छाये थे, रूक-रूककर फुहारें भी पड़ रही थी गंगा और घाघरा दोनों नदियों मे आयी बाढ़ से लकड़ा, मगही, टोंस, सुरहाताल, दहताल सभी उफनाएं हुए थे, ऐसा लग रहा था मानों यह नदी-नाले भी बलिया से अंग्रेजी साम्राज्य को मिटाने पर आमादा हो।
आस-पास के गांवों और शहर के विभिन्न मुहल्लों से छोटे-छोटे जत्थे में निकला जूलूस दोपहर में जब चौक में पहुंचा तो इसका स्वरूप उफनाएं जन सागर का हो चुका था। उस समय यह चौक जिसे आज हम शहीद पार्क के रूप में जानते है, इसमें कोई चहारदीवारी नही थी। आज जहां पूज्य महात्मा गांधी की मूर्ति लगी है, उसके नीचे कुआं है। यह छह दिशाओं में निकली सड़कों की पटरी का खुला मैदान था। जिससे नीम के पेड़ों की छांव थी। यहां पहुंच कर यह जुलूस जनसभा में परिवर्तित हो गया। जिला कांग्रेस ने पं. राम अनन्त पाण्डेय जी को आज का डिक्टेटर घोषित किया था। विद्यार्थियों-व्यापारियों के इस जन समुद्र को श्री पाण्डेय जी ने दो घण्टे तक ललकारा रिमझिम बरसात हो रही थी, बीस हजार से अधिक की भीड़ को टिन के भोंपू से सम्बोधित करना भी बहुत बड़ी बहादुरी का काम था। लोग कयास लगा रहे थे, कि पुलिस हमला करेगी, लेकिन पुलिस नहीं आयी, वैसे भी गरम दल की ओर से पुलिस के हमले से निपटने की पक्की तैयारी हो गयी थी। युवाशक्ति के रूख को भांपते हुए पाण्डेयजी ने अहिंसात्मक आन्दोलन का निवेदन करते हुए प्रशासन को पंगु बनाने की बात भी कही, बलिया शहर तो कल से ही पूरी तरह बन्द था। साथ ही स्कूल कॉलेज भी बन्द ही थे। कचहरी और सरकारी कार्यालय बन्द कराने के लिए इस जन सागर ने कूच किया। लेकिन जुलूस के वहॉ पहुचने के पहले ही प्रशासन ने कचहरी और कार्यालयों मे ताला बन्द करा दिया। विजय की खुशी के साथ जैसे ही जूलूस बिखरा पं. राम अनन्त पाण्डेय की गिरफ्तारी हो गयी। बलिया शहर से निकली आजादी की यह चिंगारी गांव-कस्बों तक पहुंच चुकी थी, जगह-जगह जुलूस निकालने कि तैयारियां शुरू हो गई थी। साथ ही प्रशासन भी आन्दोलन को कुचलने तैयारी में लग गया।
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