Ballia : ’’शिव’’ का वास्तविक अर्थ ’’कल्याणकारी’’ है : गणेश पाठक
मझौवां (बलिया)। शिव अपने आप में स्वयं रहस्यमय हैं। इसलिए ’शिव’ का अर्थ भी कम रहस्यमय नहीं है। शिव का नाम शारीरिक न होकर परमात्मा शक्ति का गुणवाचक प्रतीक है। इसलिए यह ईश्वरीय गुणों एवं कर्तव्यों के आधार पर आधारित है। सनातन संस्कृति में ’’शिव’’ का वास्तविक अर्थ ’’कल्याणकारी’’ है, जो उन्हें सर्व शक्तिमान होने का भाव प्रकट करता है। यही कारण है कि अपने नाम के अनुरूप शिव मात्र किसी जाति, धर्म, मत, सम्प्रदाय का कल्याण नहीं करते, बल्कि मानव सृष्टि का कल्याण करते हैं। वैसे तो शिव की मूर्ति की भी पूजा होती है, जिसे उनका साकार स्वरूप कहते हैं। किंतु वास्तव में शिव के निराकार रूप (शिवलिंग) की ही पूजा का विधान है। शिव की आरती एवं जप-तप में भी उनके निराकार रूप का ही गायन किया जाता है। जैसे- ’’ऊँ जय शिव ओंकारा’’ तथा ’’ ऊँ नमः शिवाय’’ अर्थात् ऊॅ (निराकार आत्मा) अपने ही समान ऊँ आकार वाले निराकार पिता ’’शिव’’ को याद करते हैं। ’’शिव’ अजन्मा, अविनाशी के रूप में गायन तथा ’’ज्योर्तिमय’’ पिण्ड रूप में उनकी पूजा भी ’’शिव’’ के निराकार रूप का ही द्योतक है। चूंकि ’’शिव’’ का अर्थ कल्याणकारी है। अंतः शिव ने अपने लोक-कल्याणकारी स्वभाव के कारण अवतार लेकर सर्व साधारण की आत्माओं से काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, द्वेष, घृणा, वैमनस्य एवं उनके पापों को अपने में आत्मसात कर लेने के लिए मांगा था, किंतु उन बुराईयों के बदले नासमझ मानव ने मंदिर, भांग एवं धतूरा रूपी विस्मय पदार्थ अर्पित किया। शिव ने आंखों की कुदृष्टि (पाप की दृष्टि) मांगी, किंतु मानव ने आकड़े का फूल अर्पित किया, जिससे कि आंखों की ज्योत ही समाप्त हो जाती है। शिव का विचार था कि हे मानव तुम सब आत्माओं को मुझे ही जानों अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश तीनों में मैं ही हूं, क्योंकि मैं ही ब्रह्मा के रूप में सृष्टि की रचना करता हूं, विष्णु के रूप में पालन करता हूं एवं महेश के रूप में आसुरी सृष्टि का संहार करता हूं। अतः इन तीनों का जनक समझ कर मुझे ही स्मरण करो, तुम्हारा कल्याण होगा। किंतु अज्ञानी मानव ने तीनों के पिता होने के नाते तीन पत्रों वाला बेल-पत्र अर्पित किया। शिव के विविध नाम भी रहस्य से भरे हुए हैं। उनके ये नाम उनके गुणों एवं कर्तव्यों पर आधारित हैं, जैसे रामेश्वर, गोपेश्वर, भूतेश्वर, पापकटेश्वर, मंगलेश्वर, अनंतेश्वर, महाकालेश्वर, प्राणेश्वर, ज्ञानेश्वर, त्रिलोकीनाथ, महाबलेश्वर, मनकामेश्वर, मंगलेश्वर, जगदीश्वर, ज्योतिर्लिंगम, ओंकारेश्वर, परमात्मा, त्रिमूर्ति, क्षितीश्वर, औघड़ दानी, ऊँकार अकाल मूर्ति, पावन प्रकाश, ज्योतिर्गमय, पार ब्रह्म परमेश्वर, मुक्ति दाता, उपर्युक्त नामों के अतिरिक्त भी शिव के अनेक रहस्यमय नाम है। (मण्डी ऋषि कृत सहस्त्र नामावली ’’महाभारत’’ में दी गयी है)। इसके अलावा शिव के 108 नामों का भी वर्णन मिलता है, जो उनके रूप एवं गुणों पर आधारित है। शिव का जन्म साकार रूप से मनुष्यों के गर्भ से नहीं होता, अपितु परकाया में अवतरण होने से होता है। गर्भ से जन्म न लेने के कारण ही शिव को आजन्मा-अविनाशी कहा जाता है। शिव का अवतरण कलियुग के अंत एवं सतयुग के आदि में सम्पूर्ण विश्व को नरक से स्वर्ग बनाने के समय अति ’’घोर अज्ञान’’ रूपी ’’रात्रि’’ के समय में होता है। यही कारण है कि शिव के अवतरण को शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। शिव का वास्तविक स्वरूप सदैव ही प्रकाशमय अति सूक्ष्म ’’ज्योति बिंदु’’ स्वरूप है। ’’शिव’’ का आदेश था कि हे आत्माओं मेरे ’’ज्योति बिंदु’’ रूप में ही मुझे स्मरण करना चाहिए, किंतु मानव उन्हें ’’ज्योति बिंदु’’ रूप में याद न करके उनके पिण्ड पर बिंदु बनाकर ऊपर से एक-एक बूंद जल गिराकर ही उनके ’’ज्योति बिंदु’’ रुप की पूजा-अर्चना करते हैं।